अजीब चीज़ मोहब्बत की वारदात भी है हदीस-ए-दिल भी है रूदाद-ए-काएनात भी है ओबूदियत तो हमारा है शेवा-ए-फ़ितरी अगर ख़ुदाई करें हम तो कोई बात भी है इधर भी उठती है अर्बाब-ए-अंजुमन की नज़र कुछ आप ही नहीं महफ़िल में मेरी ज़ात भी है मिरे वजूद से ना-मुम्किनात का आलम मिरे वजूद से दुनिया-ए-मुम्किनात भी है ये इर्तिक़ा-ए-बशर की है कौन सी मंज़िल कि इस की ज़द में ख़ुदा भी है काएनात भी है