अजीब रंग है लोगों की आश्नाई का कि इश्क़ नाम हुआ जिस्म की रसाई का तबाह ये भी है बर्बाद वो भी दिखता है हज़ारों को है डसा नाग बेवफ़ाई का पटकते फिरते हैं सर अब को जा-ब-जा अपने सिला नहीं कोई मिलता है पारसाई का उन्हीं के दम पे है क़ाएम हमारी तन्हा-रवी मिज़ाज देखा है यारों की रू-नुमाई का ज़माना वालों ने सूली चढ़ा दिया मुझ को यही मिला है मुझे उज़्र पारसाई का कभी किसी के ये चेहरे पे रक़्स करती है बढ़ा है काम सियासत में रौशनाई का उसी को मैं ने फिसलते क़रीब से देखा निकाल लाया था जो तोड़ मोड़ काई का बिठा रहे हो कपासों पे ठीक है लेकिन करोगे क्या ये बताओ दिया-सलाई का