अजीब रंग तिरे हुस्न का लगाव में था गुलाब जैसे कड़ी धूप के अलाव में था है जिस की याद मिरी फ़र्द-ए-जुर्म की सुर्ख़ी उसी का अक्स मिरे एक एक घाव में था यहाँ वहाँ से किनारे मुझे बुलाते रहे मगर मैं वक़्त का दरिया था और बहाव में था उरूस-ए-गुल को सबा जैसे गुदगुदा के चली कुछ ऐसा प्यार का आलम तिरे सुभाव में था मैं पुर-सुकूँ हूँ मगर मेरा दिल ही जानता है जो इंतिशार मोहब्बत के रख-रखाव में था ग़ज़ल के रूप में तहज़ीब गा रही थी 'नदीम' मिरा कमाल मिरे फ़न के इस रचाव में था