बहुत सुना था कि खुलता है पर नहीं खुलता ख़ुदा के वास्ते बंदे का घर नहीं खुलता वो एक शे'र जो खुलता है सारी महफ़िल पे वो जिस पे खुलना है उस पे मगर नहीं खुलता हमारे क़द के मुताबिक़ जिसे बनाया था वही वो दर है जो बालिश्त-भर नहीं खुलता बने हुए हैं अजाएब-घरों की ज़ीनत हम पर अपने वास्ते अपना ही दर नहीं खुलता तुम्हें पहुँचना है 'इक़बाल' 'मीर' 'ग़ालिब' तक मगर वो रास्ता शायद इधर नहीं खुलता करे की मिन्नतें करते हैं एक मुद्दत से मगर नसीब में अपने सफ़र नहीं खुलता सवाल दस्तकें दे कि हुए फ़ना 'फ़ानी' जहाँ जवाब है बस वो ही दर नहीं मिलता