अजीब शहर का मंज़र है क्या किया जाए हर एक हाथ में ख़ंजर है क्या किया जाए फ़ज़ा चमन की मोअ'त्तर है क्या किया जाए बड़ा हसीन ये मंज़र है क्या किया जाए जो राह पर था वही बन गया है अब रहज़न यही तो वक़्त का हम-सर है क्या किया जाए किसी को ऐश-ओ-तरब और किसी को दर की भीक ये अपना अपना मुक़द्दर है क्या किया जाए सनम-कदे का मुसव्विर भी आज हैराँ है यहाँ हर आदमी आज़र है क्या किया जाए अब अपने शहर में जीना भी हो गया मुश्किल यहाँ हर एक फ़ुसूँ-गर है क्या किया जाए तमाम उम्र कटी जिस की रहज़नी में 'शाद' वही तो आज का रहबर है क्या किया जाए