अजीब शख़्स है तेवर है बाग़ियाना सा बनाए रखता है सूली पे आशियाना सा अजीब शौक़ है शौक़-ए-विसाल भी उस का गुलाल चेहरा तबस्सुम है फ़ातेहाना सा निगाह-ए-नाज़ लिए ख़्वाब ख़्वाब सूरत है हर आदमी है यहाँ गुम-शुदा फ़साना सा तसव्वुरात के बुत टूटते बिखरते हैं हर इक जुमूद पे लगता है ताज़ियाना सा तड़पती मछली की आँखें फड़क गई सी हैं ग़ज़ब का साध रहा है कोई निशाना सा ज़माना-साज़ क़लंदर है किस ख़याल में गुम और उस के ज़ेर-ए-क़दम है पड़ा ज़माना सा झुकाए रखती है उस के कलाम की क़ुव्वत लिबास डाल रखा है फटा-पुराना सा किसी ने मौत की पर्ची पे लिख दिया 'उल्फ़त' ये ज़िंदगी से तआ'रुफ़ है ग़ाएबाना सा