है जमाल-ए-हुस्न का परतव सनम-ख़ाना कहीं बुत-कदा का'बा कहीं है और मय-ख़ाना कहीं सीधे रस्ते से भटक जाए न फ़रज़ाना कहीं आ न जाए अक़्ल की बातों में दीवाना कहीं ये भी कोई ज़िंदगी में ज़िंदगी है हम-नफ़स दिल कहीं है हम कहीं हैं और जानाना कहीं ताबिश-ए-बर्क़-ए-सितम से या इलाही जल न जाए अंदलीब-ए-ज़ार का गुलशन में काशाना कहीं फिर न दोहराए कहीं तारीख़ अंजाम-ए-सितम हो न जाए सब्र का लबरेज़ पैमाना कहीं उन के दामन से लिपट ही जाएगी बस ख़ाक-ए-दिल ज़िद पे आ जाए न अपना जोश-ए-रिंदाना कहीं कैसी उजड़ी है ये महफ़िल 'ऐश' हंगाम-ए-सहर शम-ए-कुश्ता है कहीं और ख़ाक-ए-परवाना कहीं