नज़रों से किसी को भी गिराते नहीं जानाँ हर बात रक़ीबों को बताते नहीं जानाँ रहते हैं वो मुरझाए हुए मौसम-ए-गुल में जो लोग कभी हँसते हँसाते नहीं जानाँ हर पल तिरी आँखें तिरी ख़ुशबू है मिरे साथ ये बात मगर सब को बताते नहीं जानाँ अट सकता है तेरा भी इसी धूल से चेहरा रुस्वाई की यूँ गर्द उड़ाते नहीं जानाँ दिल-गीर तो होते हैं तग़ाफ़ुल से तिरे हम लेकिन कभी एहसान जताते नहीं जानाँ ये हज़रत-ए-'जाज़िब' जो गिरफ़्तार-ए-वफ़ा हैं आशिक़ हैं मगर शोर मचाते नहीं जानाँ