अजीब शाम का मंज़र दिखाई देता है जब आफ़्ताब ज़मीं पर दिखाई देता है मुझे तो नील-गगन के विराट आँगन में हसीन चाँद पे इक घर दिखाई देता है फ़लक का बोझ मुक़द्दर में जिस के लिक्खा हो उसे तो चाँद भी पत्थर दिखाई देता है जिन्हें बचाना था अम्न-ओ-अमाँ का शीश-महल उन्हीं के हाथों में पत्थर दिखाई देता है जिसे तलाश किया आप ने ज़माने में मुझे वो ख़ुद ही के अंदर दिखाई देता है