अज़िय्यत-नाक होता है किसी के हिज्र में रहना ख़ुशी जितनी भी मिल जाए मैं ग़म महसूस करता हूँ किसी के हिज्र में आँखों को रोए उम्र गुज़री है मगर इस आँख को अब तक मैं नम महसूस करता हूँ मिरी हर इक ख़ुशी तुम से मिरी रग रग में बहते हो फ़क़त तेरा ही मैं हमदम अलम महसूस करता हूँ अक़ीदत और उल्फ़त से मैं जब मस्जिद को जाता हूँ मैं इस कच्ची सी मस्जिद को हरम महसूस करता हूँ अलग ये बात है अब तक मदीने जा सका न मैं मगर उन का मैं ख़ुद पर सब करम महसूस करता हूँ हमारे दरमियाँ जब से रवय्यों की छिड़ी है जंग अगर वो आप भी कह ले मैं तुम महसूस करता हूँ हर इक नेकी का बदला लाख नेकी है 'सहर' इस माह इबादत जितनी कर लूँ फिर भी कम महसूस करता हूँ