अक्स महबूब का आया जो नज़र पानी में यूँ लगा जैसे उतर आया क़मर पानी में घोल कर ज़हर वो देते हैं अगर पानी में और बढ़ता है मोहब्बत का असर पानी में रोज़ पानी पे बनाता हूँ मैं उस की तस्वीर आते हैं ज़ीस्त के आसार नज़र पानी में ऐसा मंज़िल के क़रीं टूट के बरसा बादल आख़िरश डूब गई राहगुज़र पानी में मिरे अश्कों से न दामन तिरा जल जाए कहीं सुनता आया हूँ कि होता है शरर पानी में उम्र भर यूँही मैं तूफ़ान-ए-बला से खेला शाम पानी में कटी और सहर पानी में हर्फ़ आ जाएगा तुम पर भी यक़ीनन लहरो डूब कर मर गया दीवाना अगर पानी में क्यों न पी लूँ इसे छू कर ये तिरे लब आया हो गया होगा तिरे लब का असर पानी में मुझ को सब रोक रहे थे सर-ए-साहिल 'हैरत' मैं तो करता ही रहा अपना सफ़र पानी में