अक्स पानी में अगर क़ैद किया जा सकता ऐन-मुमकिन था मैं उस शख़्स को अपना सकता काश कुछ देर न पलकों पे ठहरती शबनम मैं उसे सब्र का मफ़्हूम तो समझा सकता बे-सहारा कोई मिलता है तो दुख होता है मैं भी क्या हूँ कि किसी काम नहीं आ सकता कितनी बे-सूद जुदाई है कि दुख भी न मिला कोई धोका ही वो देता कि मैं पछता सकता रूठने वाले की आँखें भी तो पुर-नम थीं 'ज़फ़र' मुझ से बे-अश्क भला कैसे रहा जा सकता