अक्स पानी में जल गए कितने जुगनुओं से बहल गए कितने कहकशाँ माँग में सँवरने लगी रंग काजल में ढल गए कितने आए सब रास्ते मिरे घर तक आसमाँ तक निकल गए कितने बात फैली शफ़क़ किनारों तक चाँद-तारे अजल गए कितने ध्यान का दर खुला तो यादों के दीप आँखों में जल गए कितने होते होते ये तौर आम हुआ गिरते गिरते सँभल गए कितने वो भी ख़्वाबों के हम-सफ़र ठहरे क़ाफ़िले रुख़ बदल गए कितने कोई हर्फ़-ए-दुआ हुआ भी नहीं हादसे जाँ से टल गए कितने