अलग हैं हम कि जुदा अपनी रह-गुज़र में हैं वगरना लोग तो सारे इसी सफ़र में हैं हमारी जस्त ने माज़ूल कर दिया हम को हम अपनी वुसअतों में अपने बाम ओ दर में हैं यहाँ से उन के गुज़रने का एक मौसम है ये लोग रहते मगर कौन से नगर में हैं जो दर-ब-दर हो वो कैसे सँभाल सकता है तिरी अमानतें जितनी हैं मेरे घर में हैं अजीब तरह का रिश्ता है पानियों से 'मलाल' जुदा जुदा सही सब एक ही भँवर में हैं