हाल न पूछो रोज़-ओ-शब का कोई अनोखी बात नहीं दिन को कैसे रात कहें हम रात भी अब तो रात नहीं लगने को तो सेहन-ए-चमन में दोनों अच्छे लगते हैं काँटों में जो अपना-पन है फूलों में वो बात नहीं दिल से भुला तो दें हम उन को लेकिन इस को क्या कीजे सदियों की रूदाद भुलाना अपने बस की बात नहीं गुलशन गुलशन शाख़ ओ शजर पर रोज़ नशेमन जलते हैं किस ने कहा था मौसम बदला अगले से हालात नहीं एक ज़रा सी बात पे क्यूँ है इतना हंगामा 'मुमताज़' शीशा-ए-दिल ही तो टूटा है और तो कोई बात नहीं