अलग हर इक फ़साने से है तम्हीद-ए-बयाँ मेरी ज़माना मुस्कुरा देता है सुन कर दास्ताँ मेरी शमीम-ए-जिद्दत-ए-मफ़्हूम है तर्ज़-ए-बयाँ मेरी मुफ़क्किर बन के महकेगी चमन में दास्ताँ मेरी यक़ीं की हद से बाहर हो चुके हैं आप के वा'दे इधर कुछ और बन जाने को हैं ख़ामोशियाँ मेरी जुनूँ ने तो उड़ा दीं धज्जियाँ जैब-ओ-गरेबाँ की मगर जैब-ओ-गरेबाँ ने उड़ा दीं धज्जियाँ मेरी यक़ीनन तू ही फुंक जाएगी बिजली मुँह अगर मोड़ा हरीफ़-ए-बर्क़ बन जाएगी शाख़-ए-आशियाँ मेरी मज़ाक़-ए-दीद बख़्शा तो शुऊ'र-ए-दीद भी बख़्शो तुम्हें देखूँगा मैं कैसे नज़र ऐसी कहाँ मेरी मुझी पर तंज़ करती है मिरी बे-चारगी 'माहिर' कि अब तो आख़िरी मंज़िल में है उम्र-ए-रवाँ मेरी