अलम आह-ओ-फ़ुग़ाँ आँसू गिले बेचारगी ले कर तुम्हारे पास आया हूँ मैं अपनी ज़िंदगी ले कर चमन से एक काँटा और इक नाज़ुक कली ले कर तक़ाबुल कर रहा हूँ ज़िंदगी से ज़िंदगी ले कर नहीं छुपते हों धब्बे जिस से मेरी बे-गुनाही के मुझे हाजत नहीं क्या होगा ऐसी रौशनी ले कर तिरे आरिज़ से ये ज़ुल्फ़-ए-सियह जब भी सरकती है गगन का चाँद छुप जाता है अपनी रौशनी ले कर तिरे रुख़्सार के तिल पर मुझे अक्सर ख़याल आया कँवल पर जैसे भँवरा रुक गया हो ज़िंदगी ले कर महल ता'मीर ये जो कर रहा है ख़ून से अपने यही फ़ुटपाथ पर दम तोड़ देगा बेबसी ले कर बराए-नाम 'अनवर' हूँ करम अहबाब का वर्ना अज़ल ही से मुक़द्दर में चला हूँ तीरगी ले कर