अलम का अपने इज़ाला न कर सका वो भी मिरे बग़ैर गुज़ारा न कर सका वो भी बना सका न कहीं और मैं सनम-ख़ाना किसी का साथ गवारा न कर सका वो भी मैं अपने तौर तरीक़ों से ख़ूब वाक़िफ़ हूँ बुरा था मैं जिसे अच्छा न कर सका वो भी तमाम रात रहा जिस्म उस के ईमा पर कुछ और इस से ज़ियादा न कर सका वो भी कभी जो एक परिंदा इधर भी आया था गुरेज़-पा था बसेरा न कर सका वो भी ये मानता हूँ बहुत मेहरबान था हम पर हमारे ग़म का मुदावा न कर सका वो भी वो इक चराग़ 'शराफ़त' जो कब से रौशन है अंधेरे घर में उजाला न कर सका वो भी