बे-ख़ुदी के अजब हिसार में है शहर-ए-दिल किस के इंतिज़ार में है फिर वो आएगा और मनाएगा दिल अभी तक इस ए'तिबार में है आ तुझे कुछ तसल्लियाँ दे दूँ और क्या मेरे इख़्तियार में है क्या ख़िज़ाँ का गिला करे कोई दिल ख़राबा भरी बहार में है शब गुज़रती थी आह-ओ-ज़ारी में बे-कली अब कहाँ वो प्यार में है ज़िंदगी ढूँढती है जा-ए-पनाह आदमी अब भी इक फ़िशार में है गो 'शराफ़त' तवील हो तहरीर हुस्न-ए-तहरीर इख़्तिसार में है