सुकूत-ए-दिल की तरफ़ हैं समाअ'तें अपनी हमें पुकार रही हैं हक़ीक़तें अपनी तिरे सितम भी मुसलसल हैं और फिर इस पर ख़ुद अपने दिल को दुखाने की आदतें अपनी यहाँ सब अहल-ए-ख़िरद और मैं इक अहल-ए-जुनूँ बदल सकूँ भी तो किस से तबीअ'तें अपनी ख़ुदा को सौंप दिए काम तो सभी लेकिन मैं उस के नाम न कर पाया फ़ुर्सतें अपनी वो एक अहद-ए-जवानी जो राएगाँ गुज़रा तमाम उम्र दिखाएगा वहशतें अपनी ख़ुद एक हद में समेटे हुए वजूद अपना तलाश करता रहा हूँ मैं वुसअ'तें अपनी इन्ही के सदक़े बची है अमल की गुंजाइश बड़े ही ध्यान से सुनना शिकायतें अपनी अजब नहीं वो ख़ुदा बन के फिर रहा है अगर सँभल सकी हैं भला किस से शोहरतें अपनी सो तय हुआ है सर-ए-बज़्म-ए-दुश्मनाँ ये ही ख़ुद अपना क़त्ल करेंगी रिफाक़तें अपनी अगर बुरा न लगे तुझ को एक बात कहूँ तू अपने पास ही रख सब नसीहतें अपनी तुझे 'अमर' तिरी बे-चेहरगी मुबारक हो मिटा दे और भी सारी सबाहतें अपनी