उदास रहने की आदतों का शिकार हो कर तू रह न जाना ऐ ज़िंदगी तार-तार हो कर फ़क़त शराबों के आसरे कट रहे हैं दिन-रात उतर चुका हम को और तो हर ख़ुमार हो कर हम अपने होने की ख़ुश-गुमानी में चूर थे जब गुज़र गई हम से याद-ए-परवरदिगार हो कर ये बे-यक़ीनी है आदमी तक तो ठीक लेकिन मैं रह न जाऊँ ख़ुदा से बे-ए'तिबार हो कर मैं कब से क़ैद-ए-वजूद में घुट रहा हूँ लेकिन मुझे सुकूँ भी नहीं है ख़ुद से फ़रार हो कर वो भोले-पन को पहन के फिरता है इस जहाँ में तुम उस से मिलना तो बस ज़रा होशियार हो कर वो काम जिस की हमें तवक़्क़ो थी दुश्मनों से अमल में कुछ लोग लाए तो हैं प यार हो कर अभी तो उन को फ़ज़ा में हर सम्त था महकना जो ख़ुशबुएँ रह गईं सुपुर्द-ए-ग़ुबार हो कर 'अमर' कहीं खुल न जाए हालत सुकून-ए-दिल की मिलो हर इक शख़्स से बड़े बे-क़रार हो कर