अम्न-ओ-अमाँ की ख़ातिर खाई थीं हम ने क़स्में लेकिन रहा नहीं है ये काम अपने बस में हालात-ए-हाज़िरा ने की ऐसी रहनुमाई गुलशन को ढूँडते थे हम आ गए क़फ़स में क़ुदरत के चाहने से होगा इलाज इस का अब ग़म नहीं है मेरा दुनिया की दस्तरस में दैर-ओ-हरम से मेरा बस वास्ता है इतना ये भी है मेरे बस में वो भी है मेरे बस में 'बिस्मिल' मिरे अज़ाएम दुनिया से हैं निराले हँस कर मैं जी रहा हूँ रह कर भी ख़ार-ओ-ख़स में