ये किस को आया ख़याल मेरा ये मैं किसे याद आ रहा हूँ जिगर की बे-ताबियों में कुछ कुछ सुकून सा आज पा रहा हूँ ये माह-ओ-अंजुम ये नुक़रई शब ये मुस्कुराहट ये जगमगाहट ये किस की उल्फ़त के हैं करिश्मे कि हर तरफ़ हुस्न पा रहा हूँ तुम्हें मुबारक तुम्हारी महफ़िल यहाँ से उक्ता गया मिरा दिल मिरे इरादे रहें सलामत मैं अपनी मंज़िल पे जा रहा हूँ ये कुंज-ए-हस्ती ये मौत का घर ये दिल के नग़्मे नशात-परवर फ़ना की मसनद पे बैठ कर भी हयात का लुत्फ़ उठा रहा हूँ तू मेरी तस्वीर-एमख़ाना-ए-दिल की तुरफ़ा-कारी तो देखता जा ये किस की सूरत का अक्स ले कर मैं अपनी सूरत बना रहा हूँ ये क्या ख़बर दैर है कि का'बा यहाँ तो है अबदियत का सौदा किया है तू ने जहाँ इशारा वहीं सर अपना झुका रहा हूँ ये शब का हैजाँ-नवाज़ आलम न कोई मोनिस न कोई हमदम तो फिर किसे मैं फ़साना-ए-ग़म सिसक सिसक कर सुना रहा हूँ मैं उस जगह हूँ मुक़ीम 'तुरफ़ा' क़दम क़दम पर जहाँ है फ़ित्ना मगर ख़ुदा है मिरा मुहाफ़िज़ कि आज तक मुस्कुरा रहा हूँ