अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू को भी तकरार मत बता हरगिज़ ज़बाँ को तीर-ओ-तल्वार मत बता इस ज़िंदगी को डर के मसाइब की धूप से राहत की छाँव के लिए ग़म-ख़्वार मत बता ज़र ज़न ज़मीन अस्ल में तीनों हैं फ़ित्ना-गर हिर्स-ओ-हवस का दिल को तलबगार मत बता नादान दिल को ज़र्फ़ से ख़ाली दिमाग़ को अपना रफ़ीक़ अपना मदद-गार मत बता 'अनवर' नशात-ओ-ऐश में दुनिया की डूब कर मुल्क-ए-अदम की राह को पुर-ख़ार मत बता