अपने किरदार से गिरते हुए बंदे देखे मैं ने इंसान की सूरत में दरिंदे देखे पहले मुजरिम को ही मिलती थी गुनाहों की सज़ा अब तो मासूम की गर्दन में ही फंदे देखे जिन के दम से है फ़लक-बोस मकानों का वजूद इन के हैं कौन से बाज़ार में धंदे देखे आज उजड़े हुए लोगों की पनह-गाहों में मैं ने मर्दों की तरह सैंकड़ों बंदे देखे सर बसर फ़िरक़ा परस्तों के वतन में 'अनवर' रहनुमा हम ने सदा अपने गज़िनदे देखे