अँधेरी शब हो मुसल्लत घटाएँ जैसी हों कि हम चराग़-ब-कफ़ हैं हवाएँ जैसी हों न मेरे काम ही आई ये आबला-पाई न देखते हैं वो मुड़ कर सदाएँ जैसी हों मैं दिल-ज़दा हूँ कि वो शोख़ ही कुछ ऐसा है उसी के नाम लिखी हैं अदाएँ जैसी हों ये ना-रसाई के शिकवे अरे मआ'ज़-अल्लाह तुम्हारे दर पे तो आए वफ़ाएँ जैसी हों ख़ुद आगही की अभी तक सलीब उठाए हुए फिरे हैं कूचा-ब-कूचा सज़ाएँ जैसी हों नियाज़ शर्त है दिल के गुदाज़ को 'सरमद' तुम अपना हाथ उठाओ दुआएँ जैसी हों