अँधेरी शब में उजालों को आम हम करते अगर चराग़ जलाने का काम हम करते हमारे ज़ौक़-ए-सफ़र को न ये गवारा हुआ कि दरमियान-ए-मसाफ़त क़ियाम हम करते कई गुनाह जो थे उन के नाम से मंसूब वो चाहते थे उन्हें अपने नाम हम करते न मिलते रोज़ अगर तो कभी कभी ही सही पड़ोसियों से दुआ-ओ-सलाम हम करते मज़ा था जिस में वो नेकी जनाब-ए-शैख़ ने की जो बे-मज़ा था वो क्या नेक काम हम करते जो प्यासा होता कोई अहल-ए-कर्बला की तरह तो उस की प्यास को बढ़ कर सलाम हम करते