अपने अर्बाब-ए-ज़र नहीं बदले हैं बड़े कम-नज़र नहीं बदले छोड़ दी शाख़-ए-गुल हुई मुद्दत तौर-ए-बर्क़-ओ-शरर नहीं बदले गर्दिशों ने जहान को बदला शैख़ वाला गुहर नहीं बदले इंक़लाब आ के हो गए रुख़्सत अपने शाम-ओ-सहर नहीं बदले हम को दुनिया कुचल के रख देगी हम ने रहबर अगर नहीं बदले घोला जाता है ज़हर अमृत में दोस्तों के हुनर नहीं बदले सारी दुनिया बदल गई लेकिन हम ही अपनी डगर नहीं बदले