अपने को तलाश कर रहा हूँ अपनी ही तलब से डर रहा हूँ तुम लोग हो आँधियों की ज़द में मैं क़हत-ए-हवा से मर रहा हूँ ख़ुद अपने ही क़ल्ब-ए-ख़ूँ-चकाँ में ख़ंजर की तरह उतर रहा हूँ ऐ शहर-ए-ख़याल के मुसाफ़िर क्या मैं तिरा हम-सफ़र रहा हूँ दीवार पे दाएरे हैं कैसे ये कौन है किस से डर रहा हूँ मैं शबनम-ए-चश्म-ए-तर से ऐ सुब्ह कल रात भी तर-ब-तर रहा हूँ इक शख़्स से तल्ख़-काम हो कर हर शख़्स को प्यार कर रहा हूँ ऐ दजला-ए-ख़ूँ ज़रा ठहरना इस राह से मैं गुज़र रहा हूँ फ़रियाद कि ज़ेर-ए-साया-ए-गुल मैं ज़हर-ए-ख़िज़ाँ से मर रहा हूँ