अपना जमाल मुझ कूँ दिखाया रसूल आज आजिज़ की इल्तिमास कूँ करना क़ुबूल आज ऐ मेहरबाँ तबीब शिताबी इलाज कर तेरे बिरह के दर्द सीं है दिल में सूल आज मरहम तिरे विसाल का लाज़िम है ऐ सनम दिल में लगी है हिज्र की बर्छी की हूल आज गुल-रू बग़ैर ख़ाना-ए-बुलबुल ख़राब है मुरझा रहा है सेहन-ए-गुलिस्ताँ में फूल आज बे-फ़िक्र हूँ अज़ाब-ए-क़यामत सीं ऐ 'सिराज' दीन-ए-मोहम्मदी कूँ क्या हूँ क़ुबूल आज