अपना तुम्हें बनाना था कह कर बना लिया तर्ज़-ए-वफ़ा का इक नया दफ़्तर बना लिया दुनिया को ग़म का दरिया कहा अहल-ए-इल्म ने हम ने तुम्हारी याद को गौहर बना लिया हाथों में उस का हाथ लिया और इस तरह ख़ुद को रह-ए-वफ़ा का सिकंदर बना लिया मेरे लहू में लम्स तिरा दौड़ता है यूँ सीना से दिल निकाल के सागर बना लिया ठोकर लगा दी राह में जिस दर को आप ने उस दर को सब ने मील का पत्थर बना लिया अहद-ए-विसाल उन से क़यामत के रोज़ था तो वक़्त-ए-हिज्र 'शम्स' ने महशर बना लिया