अपने हालात की उन तक न ख़बर जाने दे अब तो जो दिल पे गुज़रती है गुज़र जाने दे ज़िंदगी तू ने मुझे चैन से जीने न दिया अब जो आराम से मरता हूँ तो मर जाने दे तुझ पे हो जाएगा इक रोज़ मसीहा का करम दर्द को ज़ब्त की मंज़िल से गुज़र जाने दे दौर-ए-हाज़िर का वो मंसूर भी बन जाएगा जज़्बा-ए-दार ज़रा और निखर जाने दे ये तअ'स्सुब की हवाएँ ये अदावत का ग़ुबार ऐसे तूफ़ाँ को दबे पाँव गुज़र जाने दे इक न इक रोज़ बदल जाएगा फ़र्सूदा निज़ाम ज़ुल्फ़-ए-गीती के ज़रा ख़म तो सँवर जाने दे फिर बताऊँगा तुझे आलम-ए-मस्ती क्या है सब्र का मेरे ज़रा जाम तो भर जाने दे मैं तिरे साथ बहुत दूर निकल आया हूँ ज़िंदगी अब तो मुझे लौट के घर जाने दे मैं मोहब्बत हूँ मिरे दम से है दुनिया में बहार मुझ को ख़ुशबू की तरह 'शौक़' बिखर जाने दे