चाँद की ख़ाक छानते रहिए इस हक़ीक़त को मानते रहिए रात महकेगी चाँदनी की तरह फूल जूड़े में टाँकते रहिए ले के हाथों में दर्द का कश्कोल आस की भीक माँगते रहिए चाँद धरती को चूम ले शायद दिल के रौज़न से झाँकते रहिए हाथ आ जाएगी गगन की पतंग डोर से डोर बाँधते रहिए चाहे मोती मिलें न सहरा से दर्द की रेत छानते रहिए दर्द-ए-दिल का यही मुदावा है हर मसर्रत को बाँटते रहिए