अपने ही आस पास हूँ मैं ख़ुद जो अपनी असास हूँ मैं जो हक़ीक़त से बे-ख़बर हैं नज़्द उन के क़यास हूँ मैं इंस-ओ-जाँ के लिए जहाँ में है अगर वो निवास हूँ में उस के बुनने में मुंहमिक हूँ हर बदन का लिबास हूँ में फ़िक्र अपने शिकम की क्यों जब हर दहन का ग्रास हूँ मैं तिश्ना-कामो हूँ वैसे सोता दश्त-ए-वहशत में प्यास हूँ मैं चाहे दारुल-अमान में हूँ इस जगह भी हिरास हूँ मैं क़ुर्ब हासिल है चाँदनी का जिस्म-ए-सीमीं की आस हूँ मैं बास फूलों की चंद लम्हे अपने तन ही की बास हूँ मैं दहर में मैं जहाँ-जहाँ हूँ उन्नति हूँ विकास हूँ मैं जो है मर्ग़ूब हर किसी को इक वही तो विलास हूँ में