अपने होने की झलक देता है फ़न कहीं भी हो चमक देता है फूल उस को भी महक देता है हाथ जो उस को झटक देता है ग़ैर तिनका भी उचक देता है अपना तो अपने की ढक देता है आप अँधेरों का गिला करते हैं चाँद तारे भी फ़लक देता है पहले जी भर के जलाता है मुझे और फिर बाद-ए-ख़ुनुक देता है जो शजर चाहता है फूल और फल अपनी शाख़ों को लचक देता है अब भी शरमाता है साजन मेरा अब भी आँखों को झपक देता है ज़ख़्म तो पहले भी देता था वो आज-कल साथ नमक देता है नींद वो भी तो हसीं है 'उल्फ़त' जब ज़रा बाप थपक देता है