अपनी बाहों को हम ने पतवार किया था तब जा कर वो ख़ून का दरिया पार किया था पत्थर फेंक के लोगों ने जब इज़्ज़त बख़्शी हम ने अपने हाथों को दस्तार किया था कौन से ख़्वाब ने रात अपनी आँखें खोली थीं किस की ख़ुशबू ने दिल को बेदार किया था उस ने दिल पर क़ब्ज़ा किया बन बैठा आमिर हम ने जिस की शाही से इंकार किया था बनते गए थे अपनी ठोकर से वो रस्ते जिन रस्तों को तू ने कल दीवार किया था जिन को कभी इक आँख न हम भाए थे 'अख़्तर' हम ने उन की नफ़रत से भी प्यार किया था