दार पे चढ़ के जो तजदीद-ए-वफ़ा होती है इस शहादत पे तो सौ जान फ़िदा होती है जिन को दावा-ए-ख़िरद हो ज़रा आ कर देखें इश्क़ की राह बहुत होश-रुबा होती है दर्द में डूबी निगाहों की ज़बाँ है गोया और बातों से गो ये बात जुदा होती है हुस्न जब सोज़-ए-मोहब्बत से जिला पाता है क्या तजल्ली पस-ए-फ़ानूस-ए-वफ़ा होती है उन हसीं आँखों में है हसरत अल्ताफ़-ओ-करम दिल ही जाने ये क़यामत की अदा होती है फूल के दीदा-ए-पुर-नम का ये अंजाम ब-ख़ैर पत्तियाँ झड़ती हैं शबनम भी ख़फ़ा होती है सुब्ह तक हाल-ए-दिल-ए-ज़ार पे रो लो 'अख़्तर' इस घड़ी दर्द के मारों की दवा होती है