अपनी बे-मौसमी सी मोहब्बत का इज़हार कर के मुझे ऐसे माइल न कर यार तू जानता है मैं पहले ही तन्हा हूँ सो तू मुझे और तन्हा न कर देख मैं जानता हूँ तिरे हिज्र और वस्ल के भेद को इश्क़ के वेद को तू मुझे हिज्र में रख या फिर वस्ल में हाँ मगर उन के माबैन रुस्वा न कर ज़िंदगी और वक़्त अपने अपने तईं कितने बे-रहम हैं सब को मालूम है इन के हाथों लगे ज़ख़्म भरने भी दे वक़्त बे-वक़्त अब इन को छेड़ा न कर