दिल में इक क़ब्र हर इक हसरत-ए-नाकाम के बाद और इक शौक़-ए-कलाम आख़िरी पैग़ाम के बाद शाम ढलते ही चराग़ों को बुझाया मैं ने कोई परवाना नहीं मरने दिया शाम के बाद हाए अफ़सोस सद-अफ़्सोस मिरे होंटों पर एक भी नाम नहीं ठहरा तिरे नाम के बाद ज़ौक़ कुछ मिट सा गया उस के चले जाने से कोई भाया न मुझे उस परी-अंदाम के बाद इक तजस्सुस हुआ करता है बुरे काम से क़ब्ल एक पछतावा बुरे काम के अंजाम के बाद कोई भी जुर्म न हो जुर्म-ए-मोहब्बत के सिवा कोई इल्ज़ाम न हो इश्क़ के इल्ज़ाम के बाद अब तो फ़ुर्सत भी मिरे वास्ते नापैद है दोस्त इक नया काम निकल आता है हर काम के बाद