अपनी दानिश्वरी से डरता हूँ जाहिलों को सलाम करता हूँ कैसा नादाँ हूँ ज़िंदगी में भी तेरी चाहत में रोज़ मरता हूँ इस में पस्ती भी साथ देती है जब बुलंदी से मैं उतरता हूँ जाने किस वक़्त मौत आ जाए बस यही सोच कर सँवरता हूँ मुझ को महसूस कर कि मैं तुझ से ख़ुशबुओं की तरह गुज़रता हूँ आसमाँ तक यहीं से रस्ता है दिल की गहराई में उतरता हूँ जब यक़ीं हो चुका कि हूँ 'जावेद' अपने होने से अब मुकरता हूँ