अपनी दीवार अपने दर वाले हम सबा-ज़ाद थे सहर वाले ये उड़ानें परों पे लिखी हैं हम परिंदे नहीं शजर वाले खुल रहा है शिगाफ़-ए-सुब्ह-ए-फ़लक शब के वक़्फ़े नहीं हैं डर वाले क्या ख़ुदा आएगा ज़मीं पर अब खो गए किस जगह हुनर वाले मिल भी जाते तो रुक नहीं पाते हम सफ़र वाले तुम सफ़र वाले