अपनी हर बात को आख़िर वहाँ रद्द होना है वो जो बोलें उन्हीं बातों को सनद होना है इक महल और बना लो कि हवाओं में उड़ो आख़िरी घर तो वो दो गज़ की लहद होना है और कुछ रोज़ यूँही सब्र किए जा ऐ दिल उन के अंदाज़-ए-तग़ाफ़ुल की भी हद होना है सरफ़राज़ी की सआ'दत है मिरे हिस्से में इस तरक़्क़ी पे हरीफ़ों को हसद होना है इस नए दौर की लैला भी जुनूँ-पेशा नहीं लाज़िमा क़ैस के जज़्बों में ख़िरद होना है सख़्त हालात जो आएँ तो भरोसा रखना उस के दरबार से आख़िर को मदद होना है शेर कहने का सलीक़ा तो है लेकिन 'वासिक़' हम से शाइ'र को न 'ग़ालिब' न 'असद' होना है