तलाश-ए-यार में निकले तो याद घर न रहा वो शौक़-ए-दीद कि अंदाज़ा-ए-सफ़र न रहा हुईं बशारतें हिजरत की जब परिंदों को तो उन के दिल में बदलती रुतों का डर न रहा सितम-ज़रीफ़ी-ए-तहज़ीब-ए-नौ तिरे क़ुर्बां कोई भी शख़्स ज़माने में मो'तबर न रहा फ़लक से उतरेगा हम पर तमाज़तों का अज़ाब अगर ज़मीं पे कहीं साया-ए-शजर न रहा उन्हीं के पास हैं अब भी वसाइल-ए-ता'मीर जिन्हें सलीक़ा-ए-तज़ईन-ए-बाम-ओ-दर न रहा 'असद' का और ज़माना था अब तो मजनूँ पर किसी ने संग उठाया तो याद सर न रहा उसी ख़ुदा से है उम्मीद-ए-मग़्फ़िरत ऐ 'सोज़' कि जिस का ख़ौफ़ तिरे दिल में उम्र भर न रहा