अरे ओ बे-मुरव्वत तू कहाँ है तड़पता हिज्र में ये ना-तवाँ है मरीज़-ए-इश्क़ की तू ले ख़बर जल्द कि वो अब कोई दम का मेहमाँ है बुतों में संग-दिल है कौन तुझ सा तिरी संगीं-दिली सब पर अयाँ है ये सुन कर हाल मेरा हँस के बोला अयादत की मुझे फ़ुर्सत कहाँ है बुतों को नर्म-दिल देखा है किस ने सुनो संगीं-दिली वस्फ़-ए-बुताँ है न आया ज़िंदगानी में जो वो शोख़ कि मरता हूँ दम-ए-नज़अ रवाँ है तो फिर वो आ चुका मेरी लहद पर यही जब हाल-ए-दौर-ए-आसमाँ है फ़ना है ग़ैर-ए-हक़ को 'आजिज़'-ए-ज़ार बक़ा वस्फ़-ए-ख़ुदा-ए-दो-जहाँ है