उस हुस्न के नाम पे याद आए सब मंज़र 'फ़ैज़' की नज़्मों के वही रंग-ए-हिना वही बंद-ए-क़बा वही फूल खिले पैराहन में कुछ वो जिन्हें हम से निस्बत थी उन कूचों में आन आबाद हुए कुछ अर्श पे तारे कहलाए कुछ फूल बने जा गुलशन में हम लोगों के आने से पहले भी तुम लोग उधर से गुज़रते थे कभी फूल भी देखे ग़ुर्फों में कभी क़ौस-ए-क़ुज़ह किसी चिलमन में यूँ करने को इश्क़ पे क़ैद नहीं सब करते हैं अच्छा करते हैं पर हम से बहुत भी नहीं गुज़रे कुछ लोग थे मिस्र-ओ-मदयन में हम उन से जो मिल कर दूर हुए कुछ ख़ुश हुए कुछ रंजूर हुए अब दिल का ठिकाना मुश्किल है हाँ जान रहेगी ऐमन में