हौसले क्यों न दिल-ए-चर्ख़-ए-कुहन के निकले मिस्ल-ए-यूसुफ़ न फिरे जो हैं वतन के निकले मर-मिटे जो तिरी उल्फ़त में वो आज़ाद हुए जीते जी बंद से वो रंज-ओ-मेहन के निकले मैं तो ख़ुश हो के एवज़ उस के दुआएँ दूँगा मुँह से दुश्नाम जो उस ग़ुंचा-दहन के निकले गालियाँ दे के तू कर प्यार से बातें ऐ शोख़ हम तो शैदा तिरे अंदाज़-ए-सुख़न के निकले सरफ़रोशों को ख़बर दो सर-ए-मक़्तल आएँ हाथ में तेग़ लिए आज वो तन के निकले सर्व-ओ-शमशाद-ओ-सनोबर जो खड़े हैं लब-ए-जू अलम-ए-सब्ज़ हैं मातम में हसन के निकले घर से हम अपने गुनाहों की हया से 'आजिज़' मुँह छुपाए हुए घुँघट में कफ़न के निकले