आरज़ू जागा करेगी और सो जाऊँगा मैं रफ़्ता-रफ़्ता एक दिन पत्थर का हो जाऊँगा मैं कौन सी शय शहर की फिर रोक पाएगी मुझे बे-दिली जिस दिन बढ़ी सहरा में खो जाऊँगा मैं जब तलक हूँ प्यार से बातें करो बैठो क़रीब वक़्त गुज़रा और गुज़री याद हो जाऊँगा मैं फ़र्श तस्वीरें दिवारें सब हुए आख़िर हज़ीं नींद के शानों को कर के याद रो जाऊँगा मैं हो सके तो तोड़ देना फूल की चादर की रस्म गीत गाना ख़ार के कल को जो सो जाऊँगा मैं