अरमान निकल जाएँ अरमान-भरे दिल के हासिल हों मज़े फिर से साक़ी तिरी महफ़िल के मंजधार में जाकर भी हम डूब नहीं सकते तूफ़ान में ख़ुश होंगे मारे हुए साहिल के वो नज़्अ' के वक़्त आए लब हिल न सके अपने अफ़सोस रहे दिल में अरमान थे जो दिल के ग़ैरों को भरे साग़र हम क़तरे को भी तरसें अंदाज़ निराले हैं साक़ी तिरी महफ़िल के कहते हैं बहार आई क्या ख़ाक बहार आई नक़्शे हैं वही अब भी अफ़्सुर्दगी-ए-दिल के अब क़ुर्बत-ए-साहिल का अरमान नहीं बाक़ी वो लुत्फ़ लिए दिल ने कुछ दूरी-ए-साहिल के जल्वत में जिसे आए ख़ल्वत का मज़ा 'साहिर' अंदाज़ उसे भायं क्या गर्मी-ए-महफ़िल के