ज़मीं तक ही नहीं चर्चा तिरा अब आसमाँ तक है

ज़मीं तक ही नहीं चर्चा तिरा अब आसमाँ तक है
कभी तो सोच दिल में जोर की शोहरत कहाँ तक है

न जाने इस क़दर सहमे हुए हैं क्यों चमन वाले
रसाई बर्क़-ए-सोज़ाँ की तो मेरे आशियाँ तक है

मिरी तक़लीद से रश्क-ए-क़मर कहते हैं सब तुम को
तुम्हारे हुस्न का चर्चा मिरे हुस्न-ए-बयाँ तक है

इधर बेचारगी में दिल भी दुश्मन हो गया अपना
उधर जौर-ओ-जफ़ा में उन का साथी आसमाँ तक है

तुम्हारा बार-ए-एहसाँ भी उठाने के लिए नहीं बाक़ी
तुम्हारे ना-तवाँ की ना-तवानी अब यहाँ तक है

जुनूँ की कार-फ़रमाई को ये हरगिज़ न समझेगी
रसाई अक़्ल की अंदेशा-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ तक है

सँभल जा ऐ दिल-ए-नादाँ अभी तक कुछ नहीं बिगड़ा
अभी तो राज़ उल्फ़त का ख़मोशी की ज़बाँ तक है

कभी है जान ख़तरे में कभी ईमान ख़तरे में
बुतों की मेहरबानी मुझ पे 'साहिर' अब यहाँ तक है


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