अश्क आँखों में न थे दीद का सौदा तो न था इश्क़ से पहले किसी तौर तक़ाज़ा तो न था अपने ही साया से डरता हूँ इलाही तौबा इस तरह से कभी अंदेशा-ए-फ़र्दा तो न था उन से पहले भी चमन में थी सहर की रौनक़ बाद-ए-सरसर की जवानी का नज़ारा तो न था पहले भी चाँद सितारे थे फ़लक पर मौजूद गेसु-ए-शब को बहारों ने सँवारा तो न था जाने क्यूँ आँखों में आते हैं सिमट कर आँसू सोचता हूँ कहीं गर्दिश में सितारा तो न था याद आते ही बढ़ा उन से मुलाक़ात का शौक़ उठ गए ख़ुद ही क़दम दिल में इरादा तो न था मैं ने मय-ख़ाने के हर जाम में गर्मी पाई जाने क्या चीज़ थी पैमानों में बादा तो न था अब तो हर साँस पे होता है गुमान-ए-धड़कन दर्द उठता ही रहा है मगर ऐसा तो न था आँख झपकी थी 'ख़िज़र' नब्ज़ रुकी थी इक दम कुछ भी कह लीजिए वो दोस्त का जल्वा तो न था